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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

औरतें गुस्सा हों, नाराज़ हों


ऐसा कोई दिन जाता है भला जिस दिन बलात्कार की घटनाएँ न होती हों। नहीं, ऐसा कोई दिन नहीं होता। सन् 2000 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में हर घण्टे कम-से-कम एक बलात्कार तो होता ही है। असल में, बलात्कार की यह संख्या और ज़्यादा भयावह होती, अगर बलात्कार की शिकार औरतें अपनी जुबान खोलती और कहतीं कि हाँ, उनका बलात्कार किया गया है। बलात्कार संगीन गुनाह है, अधिकांश लोग यह नहीं जानते। यहाँ बलात्कारी को अपराधी घोषित नहीं किया जाता, बलात्कार पीड़िता को अपराधी कहा जाता है। समाज के लिए इससे बड़ी लज्जा की बात और कोई नहीं है। दुनिया में बलात्कार ही एकमात्र ऐसा अपराध है, जहाँ पीड़िता या शिकार को. गुनहगार ठहराया जाता है।

अमेरिका की नारीवादी लेखिका, मेरिलिन फ्रेंच ने लिखा है-हर पुरुष बलात्कारी होता है और उन लोगों का चरित्र है। वे लोग हमारा बलात्कार अपनी नज़र से, अपने तन्त्र-मन्त्र और अपने क़ानून के मुताबिक करते हैं। 'आल मेन आर रेपिस्ट एंड दैट्स ऑल दे आर! दे रेप अस विद देयर आइज, देयर लॉज ऐंड देयर कोड्स!'

मेरी प्रिय आन्द्रिया डरकिंस का कहना है-जब तक दुनिया में बलात्कार जैसी चीज मौजद है तब तक शान्ति या सविचार या समता या स्वाधीनता, कछ भी नहीं विराज सकती। तुम वह नहीं हो सकते जो होना चाहते हो। तुम उस दुनिया में निवास नहीं कर सकते जिसमें तुम निवास करना चाहते हो!

आन्द्रिया डरकिंस ने यह भी कहा है कि बलात्कार कोई दुर्घटना नहीं है, कोई गलती नहीं है। पुरुषतान्त्रिक संस्कृति में कामुकता की संज्ञा है-बलात्कार! जब तक यह संज्ञा बहाल रहेगी, तब तक पुरुष यौन-हमलावर और औरत उसके शिकार के तौर पर चिन्हित की जाती रहेगी। जो लोग इस संस्कृति को स्वाभाविक मानते हैं, वे लोग ठण्डे दिमाग से बलात्कारों का सिलसिला जारी रखते हैं।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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